गीत-राखी के राखी लेबे लाज

बंधना म बांध डारेवं भाई,
राखी के राखी लेबे लाज।
सुघ्घर कलाई तुहर सोहे,
माथे के टीका सोहे आज।।
किंजर-किंजर के देवता धामी,
बदेंव मैं तुहर बर नरियर।
लाख बछर ले जी हव भइया,
नाव हो जाये तुहर अम्मर।
तिरिया जनम ले हवं भइया,
बहिनी के राखी पहिरबे आज।।
रहे बर धरती छांव बर अगास,
अइसन बनाये हवय विधाता।
जिनगी भर रेंगत रहिबे,
कभू गड़े नइ पांव म कांटा।
नाव के बढ़त रहे सोहरत,
नाव लेही जगत-समाज।।
सबके मन के आस पूरा तैं,
हवय मोर मनसा मन के।
सब ले ऊंच-ऊचाई छूले तैं,
हवय मोर मनसा मन के।
सब जाने-पहिचाने तुहूं ला,
गरब होवय ये हमला आज।।

रामेश्वर शर्मा
रायपुर

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One Thought to “गीत-राखी के राखी लेबे लाज”

  1. अरुण कुमार निगम

    राखी परब ऊपर बने सुग्घर गीत के रचना होय हे. फोटू देख के नान्हेंपन के बालभारती के सुरता आ गे. भाई रामेश्वर शर्मा जी बधाई. गुरतुर गोठ के सब्बो पढ़िय्या मन ला राखी के परब के बधाई.

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